उत्तराखंडराजनीति

मिथक : इस सीट  से जीतता  है जिस पार्टी का प्रत्याशी उसे बैठना पड़ता है विपक्ष में, और इस सीट से जीता है इस पार्टी का प्रत्याशी उसे मिलती है सत्ता

उत्तराखंड  चुनाव में   इस  बार त्रिकोणीय  मुकाबला देखने   को     मिल   रहा   है.   इस   बार    उत्तराखंड    में कांग्रेस-बीजेपी     और  आप की सीधी टक्करदेखने को   मिल  रही है।  बाकी छोटी मोटी पार्टियां    भी  हैं जो  चुनाव  के  मैदान  में  है  लेकिन  निर्दलीय  चुनाव  लड़ रहे प्रत्याशी समीकरण  बिगाड़सकते   हैं। बता  दें कि  त्रिकोणीय मुकाबला  उत्तकाशी  में खासतौर   पर  देखने  को   मिल  रहा   है।   बता   दें  कि  आप   ने  गंगोत्री   सीट   से   सीएम   उम्मीदवार   कर्नल   अजय  कोठियाल को टिकट देकर मैदान मेँ उतारा है।

जो   पार्टी   इस    सीट   से  जीतती   है   उसे    विपक्ष  में बैठना पड़ता है

आपको  जानकारी  के लिए बता दें   कि उत्तरकाशी में तीन विधानसभा सीटों पर चुनाव होता है जिसमे पुरोला,  यमुनोत्री  और  गंगोत्री   शामलि  है।  लेकिन  इनसे    भी  कुछ  मिथक  जुडे  हैं।  सबसे  पहले  बात करते हैं पुरोला विधानसभा सीट की जिसको लेकर मिथक  है कि जो भी पार्टी इस सीट से जीत जाती  है,    उसे   विपक्ष   में   बैठना   पड़    जाता   है.   जब   से उत्तराखंड अलग राज्य बना है, ये ट्रेंड इस सीट पर लगातार  बरकरार है.  2002 के चुनाव में  इस सीट से   भाजपा के मालचंद   जीत  कर आए थे.  लेकिन बीजेपी   को   उस   चुनाव   में    हार    मिली   थी.    फिर 2007  के  विधानसभा चुनाव में   कांग्रेस के  राजेश जुवांठा  ने  उस  सीट   पर  अपना   कब्जा   किया  तो  कांग्रेस को  विपक्ष में रहना पड़ा। 2012 में बीजेपी ने  पुरोला  से  फिर मालचंद  को   मौका   दिया. वे  तो जीत   गए   लेकिन पार्टी चुनाव   हार  गई.  इसी तरह पिछले   विधानसभा  चुनाव  में   यानी  की  2017  में कांग्रेस के राजकुमार विधायक बने तो कांग्रेस सत्ता से काफी दूर रह गई.

 

बता दें कि इस बार बीजेपी ने पुरोला से दुर्गेशलाल को टिकट दिया  तो  वहीं  कांग्रेस से  मालचंद चुनाव के मैदान  में हैं.  इस सीट पर  कांटे  की टक्कर  होने वाली   है। बता दें कि    दुर्गेश लाल पिछली बार कम वोटों  के  अंतरसे  हारे  थे।  वो  निर्दलीय  चुनाव  लड़े  थे।   जीत    राजकुमार   की     हुई   थी    जो      इस    बार भाजपा में शामिल हो गए।

बात   करें गंगोत्री  सीट से जुड़े  मिथक  की  तो कहा  जाता है कि जो भी पार्टी यहां से जीतती है  उसका सत्ता  में आना तय  रहता है.   अब ये  भी  सिर्फ एक ट्रेंड  है   जो  2002  से   ऐसे    ही  चलता  आ  रहा    है. 2002 में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण ने गंगोत्री सीट जीत ली थी. उनकी उस जीत के साथ कांग्रेस भी पहली बार  सत्ता  में आ गई  थी. फिर 2007 में इस सीट से बीजेपी के गोपाल रावत विधायक बने तो    सरकार     भी    भाजपा   की    आई।   इसके   बाद  2012 के विधानसभा चुनाव में    कांग्रेस   ने  विजय पाल सजवाण ने जीत हासिल  की तो कांग्रेस सत्ता में आई   लेकिन  फिर इस ट्रेंड   ने  2017  मे  कांग्रेस को सत्ता  से बेदखल  कर   दिया  क्योंकि बीजेपी के गोपाल  रावत  चुनाव  जीत   लिए  और  भाजपा   की प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई.

लेकिन इस बार यहां मुकाबला  कांटे का होने वाला है  क्योंकि  गंगोत्री में कांग्रेस भाजपा के  साथ आप के  प्रत्याशी कड़ी   टक्कर दे   रहे  हैं। आप के कर्नल अजय    कोठियाल    को   यहां   से   टिकट   मिला     है। केदारनाथ  पुनर्निर्माण  में  उनका    अहम   रोल     रहा इसलिए   वो   मजबूत   दिख   रहे   हैं।   इस   सीट   पर  मुकाबला त्रिकोणीय होगा। इस बार बीजेपी ने यहां से सुरेश चौहान  को मौका दिया  है. कांग्रेस ने  फिर विजयपाल सजवाण पर भरोसा जताया है।

बात करें यमुनोत्री सीट की तो यहां कांग्रेस-बीजेपी से ज्यादा क्षेत्रीय दलों का दबदबा  रहा है. इस सीट से दो   बार क्षेत्रीय दल  जीते  हैं, वहीं एक-एक   बार कांग्रेस-बीजेपी  के  विधायक  बने  हैं.  यमुनोत्री  की  राजनीति  पर  नजर  डालें  तो  साफ  पता  चलता  है  कि  ये एक लौती ऐसी सीट है जहां पर ये मायने ही नहीं  रखता  कि  कौन  सी  पार्टी  मैदान  में  खड़ी  है.  जनता सिर्फ और सिर्फ अपने मुद्दे और प्रत्याशी के आधार पर वोट तय करती है. इसी वजह से राष्ट्रीय पार्टियों    से ज्यादा  क्षेत्रीय  दलों का  कमाल रहा  है. यमुनोत्री सीट   से  2002  और  2012  के  चुनाव में उत्तराखंड  क्रांति दल ने  जीत हासिल की  थी, वहीं  कांग्रेस को एक बार  2007 में जीत मिली, तो वहीं बीजेपी ने ये कमाल 2017 में मोदी लहर के दौरान किया. इस बार  बीजेपी  ने इस सीट से  केदार सिंह रावत  को   मौका  दिया    है,  वहीं  कांग्रेस   से  दीपक  बिजल्वाण  मैदान में खड़े हैं. इसके  अलावा संजय डोभाल निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.

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