उत्तराखंडराजनीति

बरसात मे मेंढ़क और चुनाव के मौसम में नेता न फुदकें तो ऋतुओं की बहार व्यर्थ।

भौंकुछ . विक्रम बिष्ट

बरसात मे मेंढ़क और चुनाव के मौसम में नेता न फुदकें तो ऋतुओं की बहार व्यर्थ।

मेंढकों की भाषा तो वही जानें जिन्हें टर्राना आता है। नेताओं की भाषा तो शायद भगवान जी भी नही जानते।

भगवान विष्णु को धर्म संस्थापना के लिये कई अवतार लेने पड़े थे। इसके लिए उनको साल-सौ साल नहीं युगों तक का इंतजार करना पड़ा था।

नेताओं को इतना कष्ट नही करना पड़ता है। चुनाव जीतने के बाद अपने पोटके भरो। चमचा पुराण से भवसागर पार करने के सपनों

में मस्त रहो। चुनाव सामने आ पड़े हैं तो चमचे भी इधर-उधर। नेता जी भी अंधेरे में खुदर-फुदर। काश कबीर दास को पढ़े और समझे होते- दुख में सुमिरन करे,,, सुख में सुमिरन करे ,क्यों दुख होय!

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