उत्तराखंड

टिहरी सीट पर भाजपा और कांग्रेस को भीतरीघात का डर, दल बदल की राजनीति से टिहरी विधानसभा का मतदाता दुविधा में

नई टिहरी। जिले की केंद्र बिुंदु विधानसभा सीट टिहरी पर ऐन वक्त भाजपा और कांग्रेस ने प्रत्याशियों की अदला-बदली की। अब दोनों दलों के लोगों को भीतरीघात का डर सताने में लगा है। दोनों दलों ने प्रत्याशियों को बदलकर कार्यकर्ताओं को मायूस तो किया ही है,वहीं मतदाताओं को भी दुविधा में डाला दिया।  

विधानसभा नामांकन से एक दिन पूर्व टिहरी विधानसभा सीट पर प्रत्याशियों की अदला-बदली हो गई, जिस कारण दोनों पार्टियों के कई सक्रिय कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में आ गये, जिसका असर चुनावी प्रचार में देखा जा रहा है। दल-बदल की राजनीति से हताश और निराश कार्यकर्ता चुनाव मैदान में केवल दिखावे के लिये कार्य कर रहें हैं। नेताओं के दल बदलने से मतदाता भी पार्टियों के साथ-साथ प्रत्याशियों पर व्यक्तिगत स्वार्थ की राजनीति करने की बात कहा रहे हैं। दलबदल करते समय पार्टी संगठन और प्रत्याशी को यह भी याद नहीं रहा कि एक ही सीट पर प्रत्याशियों की अदला-बदली करने से कार्यकर्ता निष्पक्ष भाव से प्रत्याशी के पक्ष में कार्य कर पायेगा या नहीं। दलबदल की इस राजनीति से प्रतीत होता है कि नेताओं को जनता के सरोकरों और पार्टी की विचारधाराओं से कोई लगाव नहीं रहा। पहली बार टिहरी विधानसभा सीट पर इतना बड़ा उलट फेर देखने को मिला है। नामांकन की अंतिम तिथि से पूर्व 27 जनवरी को कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व टिहरी सीट से दो बार विधायक रहे किशोर उपाध्याय ने भाजपा तथा भाजपा के सिटिंग विधायक डॉ. धन सिंह नेगी कांग्रेस के रथ पर सवार हो गये। पाला बदलने तथा टिकट वितरण के बाद दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच संगठन के खिलाफ बगावत की सुगबुगाहट होने लगी। प्रत्याशियों के दल बदलने से भाजपा और कांग्रेस के कई कार्यकर्ता अपने-अपने नेताओं के पाले में जा खिसके, जिसके बाद प्रत्याशी और कार्यकर्ता सोशल मीडिया से लेकर खुले मंचों में एक-दूसरे के संगठन पर आरोप-प्रत्यारोप मड़ने लगे। दल बदल की राजनीति से जहां भाजपा और कांग्रेस को भीतरीघात का डर सताने में लगा है,वहीं उत्तराखंड जन एकता पार्टी के प्रत्याशी पूर्व काबीना मंत्री दिनेश धनै, आम आदमी पार्टी, उत्तराखंड क्रांति दल से लेकर निर्दलीय प्रत्याशी भी जनता के बीच दलबदल के इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि दोनों दलों के नेता अभी भी रुठे कार्यकर्ताओं को अपने पाले में करने की भरपूर कोशिश में जुटे हैं

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