क्या बदलेगी टिहरी की तस्वीर ईवीएम स्ट्रांग रूम में,10 मार्च को फैसला बताएगी
नई टिहरी,विक्रम बिष्ट = अभी मतगणना नेताओं के घरों , मीडिया, कार्यालयों से लेकर चौक- चौराहों पर बेशक अटकलें ही सही, दावे और प्रतिदावों के साथ हमारा सवाल यह नहीं है कि टिहरी से विधायक कौन घोषित होने वाला है। चुनाव मैदान के हर खिलाड़ी के आरोपों-प्रत्यारोपों के साथ दावे, वायदे हैं। विधानसभा जाना एक को ही है। सवाल है कि सरकार, विधानसभा में टिहरी के वर्तमान और दीर्घकालिक हितों के लिये ठोस प्रयास होंगे या सड़कों पर संघर्ष की जरूरत होगी ? चुनाव मैदान के तीन प्रत्याशी विधानसभा में टिहरी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। सभी सत्ता पक्ष में रहे हैं। दो सरकार में भी। कह नहीं सकते कि मतदाताओं ने उनके कामकाज, व्यवहार का मूल्यांकन किन पैमानों पर किया है।
बहुत सारी बुनियादी समस्याएं हैं, जिनका समाधान वर्षों पहले हो जाना चाहिए था। नई टिहरी को ही लीजिये, इसका निर्माण बाकायदा बड़े खूबसूरत वायदों के साथ किया गया था। यानी परम्परागत आबाद शहरों की आम समस्याओं के लिए यहां कोई जगह होनी ही नहीं चाहिए थी बीते वर्षों में इनके समाधान के लिए आंदोलन करने पड़े थे। वे क्या स्वयं में सवाल नहीं थे ? हमें अपने गिरेबान में झांकना मंजूर नहीं, दूसरों के गिरेबां में झांकने की आदत है टिहरी में उत्तराखंड का बहुत कुछ दांव पर लगा है। नागरिक सुविधाओं के सुव्यवस्थित ढांचे से लेकर प्रकृति से तालमेल के साथ टिकाऊ विकास और परिसंपत्तियों के न्यायपूर्वक बंटवारे तक सारे सवालों की उलझी गांठों को सुलझाने की सबसे ठोस पहल यहीं से हो सकती है, स्थाई राजधानी गैरसैंण इसके बाद!