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हिमालय और गंगा पर मंडरा रहा खतरा, 22 मार्च को दिल्ली में होगी बड़ी विचार गोष्ठी

हिमालय और गंगा पर मंडरा रहा खतरा, 22 मार्च को दिल्ली में होगी बड़ी विचार गोष्ठी

टिहरी: हिमालय में लगातार बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन और गंगा-यमुना जैसी जीवनदायिनी नदियों के संकट को लेकर टिहरी विधायक किशोर उपाध्याय ने आज अपने आवास पर एक प्रेस वार्ता की। उन्होंने बताया कि 22 मार्च को अंतरराष्ट्रीय जल दिवस के अवसर पर दिल्ली में “हिमालय बचाओ अभियान” पर एक बड़ी विचार गोष्ठी आयोजित की जाएगी। इस महत्वपूर्ण चर्चा में राज्यसभा सांसदों, पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों और समाजसेवियों सहित कई बुद्धिजीवी हिस्सा लेंगे।

ग्लेशियरों का संकट और गंगा-यमुना पर मंडराता खतरा

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विधायक उपाध्याय ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हिमालय में बर्फ का स्तर एक तिहाई भी नहीं बचा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि यही हालात रहे, तो भविष्य में माउंट एवरेस्ट की चोटी पर भी बर्फ नहीं दिखाई देगी। यह स्थिति केवल पर्वतीय क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे गंगा, यमुना और अन्य हिमालयी नदियों का जलस्तर भी तेजी से घट रहा है।

मिजोरम विश्वविद्यालय, आइजोल के प्रोफेसर विशंभर प्रसाद सती और सुरजीत बनर्जी द्वारा किए गए 30 वर्षों के अध्ययन के अनुसार, हिमालय में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तेजी से देखा जा रहा है। तापमान बढ़ने के कारण गंगोत्री, यमुनोत्री और पिंडारी ग्लेशियर लगातार कमजोर हो रहे हैं और तेजी से पीछे हट रहे हैं।

गंगा सागर में बढ़ता समुद्र का खतरा

किशोर उपाध्याय हाल ही में गंगा सागर भी गए थे, जहां उन्होंने देखा कि समुद्र ने कपिल मुनि आश्रम क्षेत्र से करीब 30 किलोमीटर भूमि को निगल लिया है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो भविष्य में गंगा सागर द्वीप समुद्र में समा जाएगा। यही स्थिति अन्य समुद्र तटीय देशों और इलाकों में भी बनने जा रही है।

क्या भविष्य में होगा कुंभ मेला?

गंगा के घटते जलस्तर को लेकर उपाध्याय ने एक बड़ा सवाल उठाया – “क्या भविष्य में कुंभ संभव होगा?” उन्होंने बताया कि हाल ही में हुए महाकुंभ में टिहरी बांध से प्रतिदिन 200 क्यूसेक जल छोड़ा गया, तब जाकर आयोजन संभव हो सका। लेकिन अगर यही हालात रहे तो अगले कुंभ तक गंगा का जलस्तर इतना गिर सकता है कि आयोजन मुश्किल हो जाएगा।

जलवायु परिवर्तन से हिमालयी पारिस्थितिकी पर खतरा

वैज्ञानिकों के अध्ययन में यह भी सामने आया है कि 1991 से 2021 के बीच हिमालय में मोटी बर्फ की चादर 10,768 वर्ग किलोमीटर से घटकर केवल 3,258.6 वर्ग किलोमीटर रह गई है। वहीं, पतली बर्फ की चादर का क्षेत्रफल 3,798 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 6,863.56 वर्ग किलोमीटर हो गया है, जिससे क्षेत्र में गर्मी और ज्यादा बढ़ रही है।

नैनीताल जैसे इलाकों में बर्फबारी की आवृत्ति भी घट गई है। जहां 1990 के दशक में हर साल बर्फबारी होती थी, अब वहां दो से तीन साल में एक बार ही बर्फ गिरती है। औली जैसे पर्यटन स्थलों पर भी बर्फ गायब हो रही है, जिससे न केवल पारिस्थितिकी तंत्र बल्कि पर्यटन और अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है।

“साधु-संतों से करेंगे अपील”

किशोर उपाध्याय ने कहा कि वे हिमालय और गंगा को बचाने के लिए साधु-संतों से भी सहयोग की अपील करेंगे। उन्होंने कहा, “गंगा और हिमालय को संतों की शक्ति और भक्ति का स्रोत माना जाता है। यदि धार्मिक संस्थाएं इस अभियान से जुड़ेंगी, तो यह एक जन आंदोलन बन सकता है।”

हिमालय बचाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत

उपाध्याय ने जोर देते हुए कहा कि हिमालय और गंगा की रक्षा केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक की भी है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह “मानव जनित त्रासदी” पूरी दुनिया के लिए विनाशकारी साबित होगी।

क्या होगा अगला कदम

22 मार्च को दिल्ली में आयोजित विचार गोष्ठी में इस संकट के समाधान पर गहन मंथन होगा। उम्मीद है कि इससे सरकार और जनता दोनों की जागरूकता बढ़ेगी और ठोस नीतियों का निर्माण किया जाएगा।

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