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निकाय चुनाव : टिहरी जिले में भाजपा का खेला, लेकिन नई टिहरी में झटका, जानिए क्यों

निकाय चुनाव : टिहरी जिले में भाजपा का खेला, लेकिन नई टिहरी में झटका, जानिए क्यों

(मुकेश रतूडी)  टिहरी जिले के निकाय चुनाव ने स्थानीय राजनीति में हलचल मचा दी है। भाजपा ने अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है, लेकिन कुछ सीटों पर हार ने पार्टी की आंतरिक चुनौतियों को भी उजागर कर दिया है। वहीं, कांग्रेस के लिए यह चुनाव निराशाजनक साबित हुआ, जो उसके संगठनात्मक ढांचे में कमजोरी और नेतृत्व की विफलता को उजागर करता है।

भाजपा का प्रदर्शन: पहली श्रेणी में कंडारी और शाह

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देवप्रयाग विधायक विनोद कंडारी और घनसाली विधायक शक्ति लाल शाह ने अपनी कुशल रणनीति से भाजपा का परचम लहराया।

देवप्रयाग में बाजीगर बने विनोद कंडारी: कंडारी ने आरक्षण परिवर्तन और नाम वापसी के जरिए ममता देवी को निर्विरोध अध्यक्ष बनवाया।

घनसाली में शाह का नेतृत्व: शक्ति लाल शाह और उनकी टीम की रणनीति से घनसाली और चमियाला में भाजपा ने आसान जीत दर्ज की।

नई टिहरी में भाजपा की हार, संगठन पर उठे सवाल

टिहरी जिले के सबसे बड़े निकाय, नई टिहरी नगर पालिका, में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा।

भाजपा प्रत्याशी मस्ता सिंह नेगी 1838 वोटों पर सिमट गए, और तीसरे नंबर पर पहुंचे

टिहरी विधायक किशोर उपाध्याय पूर्व मंत्री दिनेश धनाई, पूर्व विधायक धन सिंह नेगी और जिलाध्यक्ष राजेश नौटियाल जैसे नेताओं के बावजूद भाजपा यहां जीत नहीं पाई।

चंबा नगर पालिका में शोभनी धनोला ने जीत दर्ज कर पार्टी की प्रतिष्ठा बचाई।

नरेंद्रनगर में सुबोध उनियाल का प्रभाव कमजोर

नरेंद्रनगर विधायक और वन मंत्री सुबोध उनियाल का अनुभव इस बार बेअसर रहा।

मुनिकीरेती और गजा में भाजपा प्रत्याशी हार गए।

हालांकि, तपोवन में जीत ने पार्टी को थोड़ी राहत दी।

कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन

प्रतापनगर विधायक विक्रम सिंह नेगी अपनी विधानसभा क्षेत्र के लंबगांव और जिला मख्यालय नई टिहरी में पार्टी को जीत दिलाने में असफल रहे।

कांग्रेस संगठन में एकजुटता और प्रभावशाली नेतृत्व की कमी साफ झलकी।

पार्टी के लिए यह समय आत्ममंथन का है।

भाजपा में तिगड़ी, पर दिल नहीं मिल रहे

टिहरी जिले में भाजपा नेताओं के बीच मतभेद चुनावी रणनीतियों पर भारी पड़े।

पार्टी के संगठन और नेताओं को आपसी विवाद सुलझाने और एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है।

राजनीतिक विश्लेषण

इन चुनावों से यह स्पष्ट है कि भाजपा का जमीनी संगठन मजबूत है, लेकिन आंतरिक मतभेद उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं। वहीं, कांग्रेस को पुनर्गठन और नेतृत्व क्षमता में सुधार करने की सख्त जरूरत है।

निकाय चुनाव के ये परिणाम आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी राजनीतिक दलों के लिए अहम सबक हैं।

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