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टिहरी का इतिहास, पौराणिक गणेश प्रयाग से आधुनिक पर्यटन नगरी तक

टिहरी का इतिहास, पौराणिक गणेश प्रयाग से आधुनिक पर्यटन नगरी तक

“‘टिहरी’ नाम की कहानी – जानिए इसके पीछे की ऐतिहासिक वजह”

“क्या है ‘टिहरी’ नाम की असली पहचान?”

“टिहरी शब्द की जड़ों तक – इतिहास और लोककथाओं से जुड़ी सच्चाई”

“टिहरी नाम के पीछे क्या है वास्तविकता”

टिहरी गढ़वाल के नाम की उत्पत्ति ऐतिहासिक, धार्मिक और भाषाई संदर्भों से जुड़ी हुई है। यह नाम “टिहरी” वास्तव में “त्रिहरी” शब्द से निकला हुआ माना जाता है, जिसका अर्थ होता है — तीन प्रकार के पापों का हरण।

“त्रिहरी” शब्द संस्कृत मूल का है। (जिसमें: त्रि = तीन तथा हरि = हरण करने वाला) यह माना जाता है कि टिहरी वह स्थान है जहाँ तीन नदियाँ — भागीरथी, भिलंगना, और घृतगंगा — मिलती हैं। यह संगम स्थल तीन प्रकार के पापों (मानसिक, वाचिक, कायिक) को हरने वाला माना गया — इसलिए इसे “त्रिहरी” कहा गया, जो बोलचाल में बदलकर “टिहरी” बन गया।

टिहरी का इतिहास: 

भागीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर एक छोटा सा गांव हुआ करता था, जिसे वर्तमान में टिहरी के नाम से जाना जाता है और जिसका पौराणिक नाम गणेश प्रयाग था। कहा जाता है कि ब्रह्मांड की रचना से पहले भगवान ब्रह्मा ने इसी स्थान पर तपस्या की थी। गढ़ का अर्थ है किला या गढ़। यह स्थान मन क्रम वचन से होने वाले पापों को दूर करने वाला माना जाता है। टिहरी उत्तराखंड राज्य का एक जिला है और शहर का नाम भी है। 

टिहरी गढ़वाल का इतिहास 18वीं शताब्दी से शुरू होता है इससे पहले यह क्षेत्र गढ़वाल रियासत का हिस्सा था, 1803 में गोरखाओं के आक्रमण के बाद राजा सुदर्शन शाह ने अंग्रेजों की मदद से 1815 में गोरखाओं को हराया और टिहरी रियासत की स्थापना की। उन्होंने 1815 मे गढ़वाल राज्य की राजधानी श्रीनगर से टिहरी स्थानांतरित की और इस शहर को अपनी रियासत की राजधानी बनाया। और तब से इस शहर को टिहरी गढ़वाल के नाम से जाने जाना लगा।

पर्यटन नगरी टिहरी: 

टिहरी एक प्राचीन स्थान है और यह भारत के सबसे पवित्र शहरों में से एक है। हिंदू धर्म की विविधतापूर्ण प्रकृति ने दुनिया भर से विदेशी पर्यटकों को यहाँ आकर्षित किया है। टिहरी बांध टिहरी गढ़वाल का मुख्य आकर्षण है। टिहरी की प्रसिद्धि का एक मुख्य कारण इसकी लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता भी है। बर्फ से ढकी चोटियों, हरी-भरी घाटियों से घिरा टिहरी एक ऐसा नज़ारा पेश करता है जो आगंतुकों को अचंभित कर देता है। भागीरथी नदी पर बांध बनाकर बनाई गई टिहरी झील का शांत पानी कई तरह के जल क्रीड़ा और मनोरंजन गतिविधियों के लिए एकदम सही पृष्ठभूमि प्रदान करता है।

रोमांच के शौकीन लोग झील के साफ पानी पर कयाकिंग, जेट स्कीइंग और पैरासेलिंग जैसे रोमांचकारी अनुभवों का लुत्फ़ उठाने के लिए टिहरी आते हैं। चाहे पहाड़ों पर शानदार सूर्योदय देखना हो या रात में सितारों से जगमगाते आसमान को निहारना हो, टिहरी आत्मा के लिए एक बेहतरीन अनुभव प्रदान करता है।

 

लेखकों द्वारा वर्णन: 

पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी द्वारा लिखी पुस्तक “गढ़वाल का इतिहास” को गढ़वाल का पहला प्रमाणिक इतिहास माना जाता है। उन्होंने इस पुस्तक को लिखने के लिए पुराने रिकॉर्ड और दस्तावेजों का गहन अध्ययन किया था। 

“उत्तराखंड का इतिहास” – लेखक: डॉ. शिवप्रसाद डबराल ‘शिव’ की किताब गढ़वाल अंचल के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भाषाई पक्षों का प्रमुख संदर्भ मानी जाती है। इसमें टिहरी नाम की उत्पत्ति “त्रिहरी” से होना बताया गया है।

“गढ़वाल गाथा” – लेखक: बच्चन सिंह द्वारा लोककथाओं और सांस्कृतिक विरासत के साथ टिहरी नाम के ऐतिहासिक पक्ष का भी वर्णन है।

“उत्तराखंड का सांस्कृतिक इतिहास” – लेखक: डॉ अजय सिंह रावत की पुस्तक में टिहरी नाम को धार्मिक दृष्टिकोण से देखा गया है, खासकर तीन पवित्र नदियों के संगम की अवधारणा से।

“उत्तराखंड का नवीन इतिहास” – लेखक: प्रो. यशवंत सिंह कठोच की पुस्तक में टिहरी के नाम, टिहरी रियासत, और भौगोलिक विशेषताओं का विस्तृत विवरण है।

टिहरी का नाम केवल एक भौगोलिक पहचान नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था, भाषाई परिवर्तनों और सांस्कृतिक मान्यताओं का परिणाम है।

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