Tehri Garhwalउत्तराखंड

श्री राम मंदिर में भव्य प्राण प्रतिष्ठा: एक ऐतिहासिक क्षण, कुलपति प्रो0 एन0के0 जोशी ने कही ये बात

श्री राम मंदिर में भव्य प्राण प्रतिष्ठा: एक ऐतिहासिक क्षण, कुलपति प्रो0 एन0के0 जोशी ने कही ये बात

आज जब सम्पूर्ण भारतवर्ष अयोध्या के भव्य राम मंदिर में श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने जा रहा है। श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 एन0के0 जोशी ने भी इस क्षण को सभी भारतवासियों के जीवन का सबसे बड़ा उत्सव बताया उन्होने कहा कि जिन अभूतपूर्व दैवीय क्षणों के लिए हमारे प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी विगत ग्यारह दिनों से सात्विक उपवास व अनुष्ठान कर रहे हैं वह घड़ी आज आ चुकी है। प्रो0 जोशी ने बताया कि हमारे माननीय कुलाधिपति/श्री राज्यपाल ले ज गुरमीतसिंह (से नि) जी ने कहा कि “राम आपके भी हैं, राम हमारे भी हैं“। प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी ने भी इस हर्षाेल्लास के पर्व को दीपोत्सव के रूप में मनाने की अपेक्षा की है। माननीय उच्च शिक्षा मंत्री डाॅ0 धन सिंह रावत जी ने भी इस दिन के लिए सभी को बधाई दी है। प्रो0 एन0के0 जोशी ने बताया कि श्री राम का चरित्र सिर्फ भक्ति ही नहीं वरन हमारे जीवन के सामाजिक, राजनैतिक और व्यवहारिक हर एक पहलू में मार्गदर्शन करता है। श्री राम ने हर क्षेत्र में एक आदर्श स्थापित किया जो हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत हैं। प्रो0 एन0के0 जोशी ने अवगत कराया कि श्री राम चरित्र के महत्व की सामयिकता को देखते हुए जब वे एन0ई0पी0-2020 के पाठ्यक्रम निर्धाारण समिति के अध्यक्ष थे सत्र 2022-23 से उत्तराखंड में जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लागू की गयी उसमें “रामायण एवं रामचरित मानस का व्यवहारिक दर्शन एवं व्यक्तित्व विकास में इसकी भूमिका“ के नाम से एक को-करीकुलर कोर्स स्नातक के सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक रूप से पढ़ाया जाना सुनिश्चित किया गया। यह एक सुखद संयोग है कि यह कोर्स अभी आने वाले सत्र में ही पढ़ाया जाएगा। 

भारतीय संस्कृति के गौरव के परिचायक सत्य, अहिंसा, धैर्य, क्षमा, मैत्री, अनासक्ति, त्याग, उदारता, निष्ठा, मानवता, प्रेम, शांति सद्भाव, परोपकार, लोकसंग्रह आदि अनेक सात्त्विक भावों का रामचरित मानस में संग्रह है, जो हमारी युवा पीढ़ी के व्यक्तित्व विकास के लिए संजीवनी है। हमारी संस्कृति के इन दिव्य भावों को आत्मसात् करके श्रीराम के उदात्त चरित्र से प्रेरणा लेकर युवा अपने जीवन में अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए उन पर विजय पाकर स्वयं के लिए तथा सम्पूर्ण समाज के लिए कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं तथा वर्तमान में राम-राज्य की स्थापना का स्वप्न साकार कर सकते हैं।

Advertisement...

बच्चों को जन्म देकर उनका पालन-पोषण करते हुए उनमें संस्कार और सद्गुणों का विकास तो माता पिता और परिजन करते हैं, परन्तु समाज और राष्ट्र के प्रति उनके दायित्व को सुनिश्चित कर उनमें उच्चतम मानवीय मूल्यों, सद्गुणों और संवेदनाओं का उच्चतम विकास रामायण, रामचरितमानस आदि जैसे शाश्वत ग्रन्थो के स्वाध्याय अथवा अध्ययन, अध्यापन से ही संभव है। इन महनीय ग्रंथों में स्वविवेक, उचित-अनुचित के प्रति सजगता, समाज एवं प्रकृति के प्रति मनुष्य मात्र के दायित्व राजा-प्रजा, पिता-पुत्र, माता-पुत्र, भाई-भाई, पति-पत्नी, गुरु-शिष्य, स्वामी-सेवक जैसे सम्बन्धों को जैसा दर्शाया गया है, इससे इनकी प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। इसमें यह भी बताया गया है कि अन्याय, अनीति, असत्य एवं पाप इत्यादि दुष्प्रवृतियाँ निश्चित रूप से विनाश को प्राप्त होती हैं तथा न्याय, सत्य, नीति एवं सद्गुणों तथा मानवीय मूल्यों की सदैव विजय होती है। यदि वर्तमान में रामायण आदि ग्रन्थों के कुछ अंशों को भी जीवन में अपनाया जाए तो जीवन श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर बन सकता है।

श्रीरामचरितमानस की रचना का उद्देश्य ही मानवता की स्थापना के साथ-साथ मूल्यपरक चिन्तन दृष्टि का विस्तार करना है। आज जब अराजकता की स्थितियाँ क्षण-क्षण निर्मित की जा रही हैं समाज में अनेकों बुराइयाँ चारों तरफ व्याप्त हैं तब रामचरितमानस की ये पंक्तियाँ अति प्रासंगिक लगती हैंः-

 

परहित सरिस धरम नहिं भाई,

पर-पीड़ा सम नहिं अधमाई।

 

‘राम‘ भारतीय संस्कृति के केन्द्रीय तत्व के रूप में स्थापित है, भारत के अतिरिक्त भारत के बाहर भी शताब्दियों से रामकथा का प्रसार रहा है। पूर्वी एशिया के लगभग तीन देशों इंडोनेशिया, कंबोड़िया एवं थाईलैंड में रामायण “राष्ट्रीय काव्यों“ के नाम से समाहित है। थाईलैंड की अपनी अयोध्या नगरी है रामकथा, प्रत्येक अनुष्ठान में रामकथा, इंडोनेशिया में बौद्धों एवं मुस्लिमों के विवाह के समय भी रामायण के किसी दृश्य की अनिवार्य प्रस्तुति तथा बर्मा, श्रीलंका, लाओस, मलेशिया, फिलीपीन, मंगोलिया, चीन, जापान, तिब्बत, खोतान आदि देशों की कला, संस्कृति एवं जनजीवन पर रामकथा का गहरा प्रभाव रामकथा के व्यापक महत्व को व्यंजित करता है। राम, मर्यादापुरुषोत्तम हैं, धर्म, दर्शन, संस्कृति और जनजीवन में मर्यादा स्थापित करने वाले सांस्कृतिक प्रतीक है जिनके माध्यम से युगीन समस्याओं का समाधान एवं चरित्र निर्माण प्रभावी ढंग से किया जाना संभव है। ऐसे राम जो सत्य के मार्ग पर चलने वाले है, अन्याय का दमन करते है, प्रेम और गृहस्थ जीवन का आदर्श प्रस्तुत करते हैं, शबरी और केवट को समाज में बराबरी एवं समता का स्थान प्रदान करते हैं परहित ही जिनका धर्म है आज के इस अति भौतिकतावादी और यांत्रिक जीवन जीती हुई पीढ़ी को जीवन का वास्तविक दर्शन एवं समतावादी दृष्टिकोण एवं तनाव प्रबंधन का मार्ग खोजने हेतु इसी चरित्र में अवगाहन, अध्ययन एवं मनन करने की महती आवश्यकता है। साकेत में मैथिलीशरण गुप्त कहते है – ‘‘राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है। कोई कवि बन जाए सहज सम्भाव्य है।‘‘ इसीलिए रामायण एवं रामचरितमानस का अध्ययन विविध कारणों से शैक्षणिक पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण है। यह दोनो महाकाव्य साहित्यिक उत्कृष्ट कृतियों के रूप में शास्त्रीय कविता की समृद्ध परंपरा को प्रदर्शित करते हैं। 

धर्म के दार्शनिक एवं नैतिक आयामों, ईश्वर के प्रति समर्पण की अवधारणा आध्यात्मिकता की गहरी समझ विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास एवं जीवन में आस्था को प्रोत्साहित करने हेतु उपयोगी है। अतीत तथा वर्तमान के मध्य सेतु के रूप में कार्य करते हुए विद्यार्थियों को सांस्कृतिक मूलों से संयुक्त करते हैं। अन्र्तसांस्कृतिक संवाद, जनसंस्कृति के विश्वासों, धारणाओं, प्रथाओं, संस्कृतिक समझ, जीवन मूल्यों, पीढ़ियों से संचित ज्ञान का प्रसार करते हुए उक्त दोनों राम काव्य विविध पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों के बीच भारत की साझी विरासत की समझ को बढ़ावा देते हुए उन्हें एक सूत्र में आबद्ध करने में सक्षम हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button