वृक्ष मानव नाम से मशहूर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विश्वेश्वर दत्त सकलानी की स्मृति में जन्म शताब्दी समारोह उनके पैतृक पुजार गांव सकलाना में मनाया गया। इस दौरान जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों सहित ग्रामवासियो ने सामूहिक पौधरोपण किया। समारोह में स्थानीय विधायक प्रीतम पंवार ने आमजन को संबोधित करते हुए कहा कि पर्यावरण संरक्षण आमतौर पर पेड़ो और हरियाली के संरक्षण को दर्शाता है, लेकिन व्यापक अर्थों में इसका तात्पर्य पेड़ों, पौधों, पशुओं, पक्षियों और पूरे ग्रह की सुरक्षा से हैं, वास्तव में पर्यावरण और जीवन के बीच एक अनूठा संबंध है वास्तव में पर्यावरण संरक्षण मानव जाति के भविष्य और अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है , आज पर्यावरणीय गिरावट और जलवायु परिवर्तन ने ,संपूर्ण मानव जाति को प्रभावित किया है, इसी समस्या को दूर करने के लिए प्रकृति प्रेमी, स्वतंत्रता संग्राम, समाजसेवी एवं कर्मयोगी वृक्षमानव विश्वेश्वर दत्त सकलानी इस धरा सुंदर एवं भरा करने केलिए अपना सबकुछ समर्पित किया है।
कार्यक्रम में विधायक टिहरी किशोर उपाध्याय ने अपने संबोधन में कहा कि आज का मनुष्य रोजमर्रा की निजी जिंदगी में उलझा हुआ है। लेकिन बहुत कम लोग होते हैं, जो अपने जीवन में निस्वार्थ भाव से मानव जाति के कल्याण के लिए निरंतर कर्म करते रहते हैं। ऐसे ही लोग ही इस संसार में मानव के रूप में जन्म लेकर महामानव बन जाते हैं। ठीक इसी तरह कर्मयोगी, महामानव, वृक्षमानव विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने भी निष्काम भाव से प्रकृति एवं समाज को सजाने और संवारने में अपना पूर्ण जीवन को समर्पित किया। वृक्षमानव के शरीर ,आत्मा और रोम-रोम में सदैव पर्यावरण और पेड़-पौधों बसते थे। उन्होंने जीवन के अंतिम समय तक पर्यावरण संरक्षण और समाजसेवा की अलख जगाए रखी। वृक्ष मानव की तपस्या से पुजार गांव सकलाना, टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में खड़ा हुआ लाखों वृक्ष का प्राकृतिक आक्सीजन बैंक जो कि समस्त प्राणियों को प्राणवायु और जल-जीवन देने का अविरल काम कर रहा है।
गौरतलबहो कि वृक्ष मानव विशेश्वर दत्त सकलानी का जन्म 2 जून 1922 को पुजार गांव सकलाना टिहरी गढ़वाल में हुआ था। वृक्ष मानव को वृक्ष लगाकर प्रकृति को संवारने का कर्मभाव अपने पूर्वजों की विरासत से मिला था। पुजार गांव में देवदारों का सघन जंगल इसका ज्वलंत उदाहरण है जो कि लगभग तीन सौ पचास साल पहले सकलानी जी के पूर्वज को शादी में दहेज में मिला था इसी के साथ पत्थर की ओखली और पत्थर का एक धारा मिला।यही कारण है वे आठ वर्ष की खेलने-कूदने की उम्र से ही पेड़ लगाने लगे थे और पर्यावरण के महत्व को समझते थे। वे कहते थे उनकी पढ़ाई लिखाई ढोकर और टक्करों के विश्वविद्यालयों में हुई। र्फिर क्या था, पुरुषार्थ एवं निस्वार्थ भाव से उम्र बढ़ने के साथ-साथ ही बंजर जमीन पर पेड़-पौधे लगाने की श्रृंखला भी बढ़ती चली गई। विश्वेश्वर दत्त सकलानी और उनके बड़े भाई अमर शहीद नागेंद्र सकलानी ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अमर शहीद नागेंद्र सकलानी ११ जनवरी १९४८ को कीर्ति नगर में शहीद हो गए।
कार्यक्रम में मीरा सकलानी पूर्व जिला पंचायत सदस्य, राकेश उनियाल, अरविंद सकलानी (प्रधान जाडगाव ) कमलेश सकलानी, राजेन्द्र जुयाल प्रभारी धनोल्टी नवेद्र नकोटी, ओमप्रकाश भटृ, संदीप सरिता रावत क्षेत्र पंचायत सदस्य हटवाल गाँव सहित ग्रामवासी उपस्थित थे