विक्रम बिष्ट
उत्तराखंड विधानसभा के पांचवें चुनाव में टिहरी गढ़वाल फिर अपनी रीत निभाएगा ? कुछ अदला-बदली के साथ अभी आसार यही दिखाई दे रहे हैं।पहले चुनाव में जिले की पांच सीटें कांग्रेस और एक एनसीपी को मिली थी। दूसरे चुनाव में मतदाताओं ने कांग्रेस, भाजपा और उक्रांद को दो-दो सीटें दी थीं 2012 में भाजपा और कांग्रेस को दो-दो सीटें मिलीं उक्रांद की जगह मतदाताओं ने दो सीटें निर्दलियों को दे दीं पिछले चुनाव में प्रचण्ड मोदी लहर धनोल्टी की सर्द पहाड़ियों के सामने पस्त हो गई, भाजपा को पांच सीटों पर संतोष करना पड़ा। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई यदि जिले के चुनावी इतिहास पर सरसरी निगाह डालें तो विरोधाभास के साथ यहां प्रतिरोध की राजनीति को ज्यादातर चुनावों में मतदाताओं ने ताकत दी है। 1952 के पहले आम चुनाव में कांग्रेस ने पूरे देश में एकतरफा जीत हासिल की थी। टिहरी में निर्दलियों ने उसे पटखनी दे दी थी, बेशक जीतने वाले सभी उम्मीदवार राज परिवार से थे यूपी के समय में भी निर्दलियों से लेकर भाकपा तक लहरों को रोकते रह थे यह लम्बी रोचक कहानी है। अभी की बात करें प्रतापनगर और नरेन्द्रनगर में सीधे कांटे का मुकाबला है बाकी सीटों पर त्रिकोणीय या बहुकोणीय संघर्ष है फिलहाल कोई लहर नहीं है आखिरी क्षणों तक कड़े संघर्ष की संभावनाएं हैं।