ऋषिकेश, 11 जून 2024: श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय परिसर में “आधुनिक परिदृश्य में भारतीय प्राच्य ज्ञान सम्पदा” विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का भव्य शुभारंभ हुआ। इस प्रतिष्ठित आयोजन का उद्देश्य भारतीय प्राचीन ज्ञान और विज्ञान की समृद्ध परंपरा पर चर्चा और विचार-विमर्श करना था। सेमिनार में देश-विदेश के अनेक विद्वानों और शोधार्थियों ने भाग लिया।
सेमिनार का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एन.के. जोशी ने किया। अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा को शिक्षा के केंद्रीय आधार के रूप में शामिल किया गया है। भारतीय ज्ञान परंपरा में लौकिक और पारलौकिक दृष्टि, धर्म और कर्म का अद्वितीय समन्वय है, जो आज भी प्रासंगिक है।”
मुख्य अतिथि प्रो. वी.एस. राजपूत ने अपने संबोधन में कहा, “प्राचीन भारतीय विज्ञान और आधुनिक प्रौद्योगिकी के मूल आधार में भारतीय ज्ञान परंपरा का महत्वपूर्ण योगदान है। उपनिषदों में जीवन के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत प्रतिपादन मिलता है, जिससे हमें आज भी मार्गदर्शन प्राप्त होता है।”
विशिष्ट अतिथि प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री ने भारतीय संस्कृति और उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “भारत की संस्कृति ने विश्व को एक परिवार के रूप में देखा है और भारतीय ज्ञान परंपरा ने मानव जाति की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।”
की-नोट स्पीकर केन कोसीबा (यू.एस.ए.), जो नमामि गंगे योजना के सलाहकार भी हैं, ने भारतीय परंपरा और मूल्यों की प्रशंसा करते हुए कहा, “भारतीय संस्कृति वेद, तंत्र और योग की त्रिवेणी है और इसमें आधुनिक विज्ञान प्रबंधन सहित सभी क्षेत्रों के लिए अभूतपूर्व खजाना है।”
सेमिनार के दौरान चार तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय आयुर्वेद, गणित, पर्यावरण, कृषि, अर्थशास्त्र, धर्मग्रंथ, दर्शन, पारंपरिक विज्ञान, वास्तुशिल्प, भौतिकी, साहित्य आदि विषयों पर गहन विचार-विमर्श हुआ।
इस अवसर पर श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय और उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के बीच शोध एवं शैक्षिक गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए।
सेमिनार का समापन प्रतिभागियों द्वारा भारतीय प्राच्य ज्ञान की आधुनिक प्रासंगिकता पर गहन मंथन के साथ हुआ। सेमिनार के सफल आयोजन में प्रो. महाबीर सिंह रावत, प्रो. अनिता तोमर, प्रो. कल्पना पंत, प्रो. पूनम पाठक सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के 228 प्रतिभागियों ने सक्रिय योगदान दिया। मंच का संचालन प्रो. पूनम पाठक ने किया।